सुख़न मुश्ताक़ है आलम हमारा
सुख़न मुश्ताक़ है आलम हमारा बहुत आलम करेगा ग़म हमारा पढ़ेंगे शेर रो रो लोग बैठे रहेगा देर तक मातम हमारा नहीं है मर्जा-ए-आदम अगर ख़ाक किधर जाता है क़द्द-ए-ख़म हमारा ज़मीन ओ आसमाँ ज़ेर-ओ-ज़बर है नहीं कम हश्र से ऊधम हमारा किसू के बाल दरहम देखते 'मीर' हुआ है काम-ए-दिल बरहम हमारा

Read Next