मुँह तका ही करे है जिस तिस का
मुँह तका ही करे है जिस तिस का हैरती है ये आईना किस का शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ दिल हुआ है चराग़ मुफ़लिस का थे बुरे मुग़्बचों के तेवर लेक शैख़ मय-ख़ाने से भला खिसका दाग़ आँखों से खिल रहे हैं सब हाथ दस्ता हुआ है नर्गिस का बहर कम-ज़र्फ़ है बसान-ए-हबाब कासा-लैस अब हुआ है तू जिस का फ़ैज़ ऐ अब्र चश्म-ए-तर से उठा आज दामन वसीअ है उस का ताब किस को जो हाल-ए-मीर सुने हाल ही और कुछ है मज्लिस का

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