जीते-जी कूचा-ए-दिलदार से जाया न गया
जीते-जी कूचा-ए-दिलदार से जाया न गया उस की दीवार का सर से मिरे साया न गया काव-कावे मिज़ा-ए-यार ओ दिल-ए-ज़ार-ओ-नज़ार गुथ गए ऐसे शिताबी कि छुड़ाया न गया वो तो कल देर तलक देखता ईधर को रहा हम से ही हाल-ए-तबाह अपना दिखाया न गया गर्म-रौ राह-ए-फ़ना का नहीं हो सकता पतंग उस से तो शम्अ-नमत सर भी कटाया न गया पास-ए-नामूस-ए-मोहब्बत था कि फ़रहाद के पास बे-सुतूँ सामने से अपने उठाया न गया ख़ाक तक कूचा-ए-दिलदार की छानी हम ने जुस्तुजू की पे दिल-ए-गुम-शुदा पाया न गया आतिश-ए-तेज़ जुदाई में यकायक उस बिन दिल जला यूँ कि तनिक जी भी जलाया न गया मह ने आ सामने शब याद दिलाया था उसे फिर वो ता सुब्ह मिरे जी से भुलाया न गया ज़ेर-ए-शमशीर-ए-सितम 'मीर' तड़पना कैसा सर भी तस्लीम-ए-मोहब्बत में हिलाया न गया जी में आता है कि कुछ और भी मौज़ूँ कीजे दर्द-ए-दिल एक ग़ज़ल में तो सुनाया न गया

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