फ़लक करने के क़ाबिल आसमाँ है
कि ये पीराना-सर जाहिल जवाँ है
गए उन क़ाफ़िलों से भी उठी गर्द
हमारी ख़ाक क्या जानें कहाँ है
बहुत ना-मेहरबाँ रहता है यानी
हमारे हाल पर कुछ मेहरबाँ है
हमें जिस जाए कल ग़श आ गया था
वहीं शायद कि उस का आस्ताँ है
मिज़ा हर इक है उस की तेज़ नावक
ख़मीदा भौं जो है ज़ोरीं कमाँ है
उसे जब तक है तीर-अंदाज़ी का शौक़
ज़बूनी पर मिरी ख़ातिर निशाँ है
चली जाती है धड़कों ही में जाँ भी
यहीं से कहते हैं जाँ को रवाँ है
उसी का दम भरा करते रहेंगे
बदन में अपने जब तक नीम-जाँ है
पड़ा है फूल घर में काहे को 'मीर'
झमक है गुल की बर्क़-ए-आशियाँ है