छुटता ही नहीं हो जिसे आज़ार-ए-मोहब्बत
छुटता ही नहीं हो जिसे आज़ार-ए-मोहब्बत मायूस हूँ मैं भी कि हूँ बीमार-ए-मोहब्बत इम्काँ नहीं जीते-जी हो इस क़ैद से आज़ाद मर जाए तभी छूटे गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत तक़्सीर न ख़ूबाँ की न जल्लाद का कुछ जुर्म था दुश्मन-ए-जानी मिरा इक़रार-ए-मोहब्बत हर जिंस के ख़्वाहाँ मिले बाज़ार-ए-जहाँ में लेकिन न मिला कोई ख़रीदार-ए-मोहब्बत इस राज़ को रख जी ही में ता जी बचे तेरा ज़िन्हार जो करता हो तू इज़हार-ए-मोहब्बत हर नक़्श-ए-क़दम पर तिरे सर बेचे हैं आशिक़ टुक सैर तो कर आज तू बाज़ार-ए-मोहब्बत कुछ मस्त हैं हम दीदा-ए-पुर-ख़ून-ए-जिगर से आया यही है साग़र-ए-सरशार-ए-मोहब्बत बेकार न रह इश्क़ में तू रोने से हरगिज़ ये गिर्या ही है आब-ए-रुख़-ए-कार-ए-मोहब्बत मुझ सा ही हो मजनूँ भी ये कब माने है आक़िल हर सर नहीं ऐ 'मीर' सज़ा-वार-ए-मोहब्बत

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