आम हुक्म-ए-शराब करता हूँ
मोहतसिब को कबाब करता हूँ
टुक तो रह ऐ बिना-ए-हस्ती तू
तुझ को कैसा ख़राब करता हूँ
बहस करता हूँ हो के अबजद-ख़्वाँ
किस क़दर बे-हिसाब करता हूँ
कोई बुझती है ये भड़क में अबस
तिश्नगी पर इताब करता हूँ
सर तलक आब-ए-तेग़ में हूँ ग़र्क़
अब तईं आब आब करता हूँ
जी में फिरता है 'मीर' वो मेरे
जागता हूँ कि ख़्वाब करता हूँ