ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या
ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या नेटिव जो है तो फिर क्या अंग्रेज़ है तो फिर क्या रहना किसी से दब कर है अम्न को ज़रूरी फिर कोई फ़िरक़ा हैबत-अंगेज़ है तो फिर क्या रंज ओ ख़ुशी की सब में तक़्सीम है मुनासिब बाबू जो है तो फिर क्या चंगेज़ है तो फिर क्या हर रंग में हैं पाते बंदे ख़ुदा के रोज़ी है पेंटर तो फिर क्या रंगरेज़ है तो फिर क्या जैसी जिसे ज़रूरत वैसी ही उस की चीज़ें याँ तख़्त है तो फिर क्या वाँ मेज़ है तो फिर क्या मफ़क़ूद हैं अब इस के सुनने समझने वाले मेरा सुख़न नसीहत-आमेज़ है तो फिर क्या

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