क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक
क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक समझे न कि सीधी है मिरी राह कहाँ तक मंतिक़ भी तो इक चीज़ है ऐ क़िबला ओ काबा दे सकती है काम आप की वल्लाह कहाँ तक अफ़्लाक तो इस अहद में साबित हुए मादूम अब क्या कहूँ जाती है मिरी आह कहाँ तक कुछ सनअत ओ हिरफ़त पे भी लाज़िम है तवज्जोह आख़िर ये गवर्नमेंट से तनख़्वाह कहाँ तक मरना भी ज़रूरी है ख़ुदा भी है कोई चीज़ ऐ हिर्स के बंदो हवस-ए-जाह कहाँ तक तहसीन के लायक़ तिरा हर शेर है 'अकबर' अहबाब करें बज़्म में अब वाह कहाँ तक

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