फ़र्ज़ी लतीफ़ा
ख़ुदा-हाफ़िज़ मुसलामानों का 'अकबर' मुझे तो उन की ख़ुश-हाली से है यास ये आशिक़ शाहिद-ए-मक़्सूद के हैं न जाएँगे व-लेकिन सई के पास सुनाऊँ तुम को इक फ़र्ज़ी लतीफ़ा किया है जिस को मैं ने ज़ेब-ए-क़िर्तास कहा मजनूँ से ये लैला की माँ ने कि बेटा तू अगर कर ले एम-ए पास तो फ़ौरन बियाह दूँ लैला को तुझ से बिला-दिक़्क़त मैं बन जाऊँ तिरी सास कहा मजनूँ ने ये अच्छी सुनाई कुजा आशिक़ कुजा कॉलेज की बकवास कुजा ये फ़ितरती जोश-ए-तबीअत कुजा ठूँसी हुई चीज़ों का एहसास बड़ी बी आप को क्या हो गया है हिरन पे लादी जाती है कहीं घास ये अच्छी क़द्र-दानी आप ने की मुझे समझा है कोई हरचरण-दास दिल अपना ख़ून करने को हूँ मौजूद नहीं मंज़ूर मग़्ज़-ए-सर का आमास यही ठहरी जो शर्त-ए-वस्ल-ए-लैला तो इस्तीफ़ा मिरा बा-हसरत-ओ-यास

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