ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी इक ना-शुनीदा उफ़ हैं इक आह-ए-बे-असर हैं

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