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पाषाण खंड
पाषाण खंड
Sumitranandan Pant
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Hindi
वह अनगढ़ पाषाण खंड था- मैंने तपकर, खंटकर, भीतर कहीं सिमटकर उसका रूप निखारा तदवत भाव उतारा श्री मुख का सौंदर्य सँवारा! लोग उसे निज मुख बतलाते देख-देख कर नहीं अघाते वह तो प्रेम तुम्हारा प्रिय मुख तन्मय अंतर को देता सुख
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Last edited by
Chhotaladka
July 30, 2016
Added by
Chhotaladka
June 19, 2016
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