कवि किसान
जोतो हे कवि, निज प्रतिभा के फल से निष्ठुर मानव अंतर, चिर जीर्ण विगत की खाद डाल जन-भूमि बनाओ सम सुंदर। बोओ, फिर जन मन में बोओ, तुम ज्योति पंख नव बीज अमर, जग जीवन के अंकुर हँस हँस भू को हरीतिमा से दें भर। पृथ्वी से खोद निराओ, कवि, मिथ्या विश्वासों के तृण खर, सींचो अमृतोपम वाणी की धारा से मन, भव हो उर्वर। नव मानवता का स्वर्ण-शस्य- सौन्दर्य लवाओ जन-सुखकर, तुम जग गृहिणी, जीवन किसान, जन हित भंडार भरो निर्भर।

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