नव इंद्रिय
नव जीवन को इंद्रिय दो हे, मानव को, नव जीवन की नव इंद्रिय, नव मानवता का अनुभव कर सके मनुज नव चेतनता से सक्रिय! स्वर्ग खंड इस पुण्य भूमि पर प्रेत युगों से करते तांडव, भव मानव का मिलन तीर्थ बन रहा रक्त चंडी का रौरव! अनिर्वाप्य साम्राज्य लालसा अगणित नर आहुति देती नव, जाति वर्ग औ’ देश राष्ट्र में आज छिड़ा प्रलयंकर विप्लव! नव युग की नव आत्मा दो पशु मानव को, नव जीवन की नव इंद्रिय, भव मानवता का साम्राज्य बने भू पर दश दिशि के जनगण को प्रिय।

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