सांस्कृतिक हृदय
कृषि युग से वाहित मानव का सांस्कृतिक हृदय जो गत समाज की रीति नीतियों का समुदय, आचार विचारों में जो बहु देता परिचय, उपजाता मन में सुख दुख, आशा, भय, संशय, जो भले बुरे का ज्ञान हमें देता निश्चित सामंत जगत में हुआ मनुज के वह निर्मित। उन युग स्थितियों का आज दृश्य पट परिवर्तित, प्रस्तर युग की सभ्यता हो रही अब अवसित। जो अंतर जग था वाह्य जगत पर अवलंबित वह बदल रहा युगपत युग स्थितियों से प्रेरित। बहु जाति धर्म औ’ नीति कर्म में पा विकास गत सगुण आज लय होने को: औ’ नव प्रकाश नव स्थितियों के सर्जन से हो अब शनैः उदय बन रहा मनुज की नव आत्मा, सांस्कृतिक हृदय।

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