सूत्रधार
तुम धन्य, वस्त्र व्यवसाय कला के सूत्रधार, बर्बर जन के तन से हर वल्कल, चर्म भार, तुमने आदिम मानव की हर नव द्वन्द्व लाज, बन शीत ताप हित कवच, बचाया जन समाज। तकली, चरख़े, करघे से अब आधुनिक यंत्र, तुम बने: यंत्र बल पर ही मानव लोक तंत्र स्थापित करने को अब: मानवता का विकास यंत्रों के संग हुआ, सिखलाता नृ-इतिहास। जड़ नहीं यंत्र: वे भाव रूप: संस्कृति द्योतक: वे विश्व शिराएँ, निखिल सभ्यता के पोषक। रेडियो, तार औ’ फ़ोन,--वाष्प, जल, वायु यान, मिट गया दिशावधि का जिनसे व्यवधान मान,-- धावित जिनमें दिशि दिशि का मन,--वार्ता, विचार, संस्कृति, संगीत,--गगन में झंकृत निराकार। जीवन सौन्दर्य प्रतीक यंत्र: जन के शिक्षक: युग क्रांति प्रवर्तक औ’ भावी के पथ दर्शक। वे कृत्रिम, निर्मित नहीं, जगत क्रम में विकसित, मानव भी यंत्र, विविध युग स्थितियों में वर्धित। दार्शनिक सत्य यह नहीं,--यंत्र जड़, मानव कृत, वे हैं अमूर्त: जीवन विकास की कृति निश्चित।

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