पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस
चिर प्रणम्य यह पुष्य अहन, जय गाओ सुरगण, आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन ! नव भारत, फिर चीर युगों का तिमिर-आवरण, तरुण अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन ! सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन, आज खुले भारत के संग भू के जड़-बंधन ! शान्त हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण, मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण ! आम्र-मौर लाओ हे ,कदली स्तम्भ बनाओ, पावन गंगा जल भर के बंदनवार बँधाओ , जय भारत गाओ, स्वतन्त्र भारत गाओ ! उन्नत लगता चन्द्र कला स्मित आज हिमाँचल, चिर समाधि से जाग उठे हों शम्भु तपोज्वल ! लहर-लहर पर इन्द्रधनुष ध्वज फहरा चंचल जय निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल ! धन्य आज का मुक्ति-दिवस गाओ जन-मंगल, भारत लक्ष्मी से शोभित फिर भारत शतदल ! तुमुल जयध्वनि करो महात्मा गान्धी की जय, नव भारत के सुज्ञ सारथी वह नि:संशय ! राष्ट्र-नायकों का हे, पुन: करो अभिवादन, जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन ! स्वर्ण-शस्य बाँधो भू वेणी में युवती जन, बनो वज्र प्राचीर राष्ट्र की, वीर युवगण! लोह-संगठित बने लोक भारत का जीवन, हों शिक्षित सम्पन्न क्षुधातुर नग्न-भग्न जन! मुक्ति नहीं पलती दृग-जल से हो अभिसिंचित, संयम तप के रक्त-स्वेद से होती पोषित! मुक्ति माँगती कर्म वचन मन प्राण समर्पण, वृद्ध राष्ट्र को, वीर युवकगण, दो निज यौवन! नव स्वतंत्र भारत, हो जग-हित ज्योति जागरण, नव प्रभात में स्वर्ण-स्नात हो भू का प्रांगण ! नव जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में, आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव मन में! रक्त-सिक्त धरणी का हो दु:स्वप्न समापन, शान्ति प्रीति सुख का भू-स्वर्ग उठे सुर मोहन! भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की, विकसित आज हुई सीमाएँ जग-जीवन की! धन्य आज का स्वर्ण दिवस, नव लोक-जागरण! नव संस्कृति आलोक करे, जन भारत वितरण! नव-जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण, नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन !

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