काले बादल
सुनता हूँ, मैंने भी देखा, काले बादल में रहती चाँदी की रेखा! काले बादल जाति द्वेष के, काले बादल विश्‍व क्‍लेश के, काले बादल उठते पथ पर नव स्‍वतंत्रता के प्रवेश के! सुनता आया हूँ, है देखा, काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा! आज दिशा हैं घोर अँधेरी नभ में गरज रही रण भेरी, चमक रही चपला क्षण-क्षण पर झनक रही झिल्‍ली झन-झन कर! नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा। काले बादल, काले बादल, मन भय से हो उठता चंचल! कौन हृदय में कहता पलपल मृत्‍यु आ रही साजे दलबल! आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा! काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा! मुझे मृत्‍यु की भीति नहीं है, पर अनीति से प्रीति नहीं है, यह मनुजोचित रीति नहीं है, जन में प्रीति प्रतीति नहीं है! देश जातियों का कब होगा, नव मानवता में रे एका, काले बादल में कल की, सोने की रेखा!

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