मानव
सुन्दर हैं विहग, सुमन सुन्दर, मानव! तुम सबसे सुन्दरतम, निर्मित सबकी तिल-सुषमा से तुम निखिल सृष्टि में चिर निरुपम! यौवन-ज्वाला से वेष्टित तन, मृदु-त्वच, सौन्दर्य-प्ररोह अंग, न्योछावर जिन पर निखिल प्रकृति, छाया-प्रकाश के रूप-रंग! धावित कृश नील शिराओं में मदिरा से मादक रुधिर-धार, आँखें हैं दो लावण्य-लोक, स्वर में निसर्ग-संगीत-सार! पृथु उर, उरोज, ज्यों सर, सरोज, दृढ़ बाहु प्रलम्ब प्रेम-बन्धन, पीनोरु स्कन्ध जीवन-तरु के, कर, पद, अंगुलि, नख-शिख शोभन! यौवन की मांसल, स्वस्थ गंध, नव युग्मों का जीवनोत्सर्ग! अह्लाद अखिल, सौन्दर्य अखिल, आः प्रथम-प्रेम का मधुर स्वर्ग! आशाभिलाष, उच्चाकांक्षा, उद्यम अजस्र, विघ्नों पर जय, विश्वास, असद् सद् का विवेक, दृढ़ श्रद्धा, सत्य-प्रेम अक्षय! मानसी भूतियाँ ये अमन्द, सहृदयता, त्याद, सहानुभूति,-- हो स्तम्भ सभ्यता के पार्थिव, संस्कृति स्वर्गीय,--स्वभाव-पूर्ति! मानव का मानव पर प्रत्यय, परिचय, मानवता का विकास, विज्ञान-ज्ञान का अन्वेषण, सब एक, एक सब में प्रकाश! प्रभु का अनन्त वरदान तुम्हें, उपभोग करो प्रतिक्षण नव-नव, क्या कमी तुम्हें है त्रिभुवन में यदि बने रह सको तुम मानव!

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