मछुए का गीत
प्रेम की बंसी लगी न प्राण! तू इस जीवन के पट भीतर कौन छिपी मोहित निज छवि पर? चंचल री नव यौवन के पर, प्रखर प्रेम के बाण! प्रेम की बंसी लगी न प्राण! गेह लाड की लहरों का चल, तज फेनिल ममता का अंचल, अरी डूब उतरा मत प्रतिपल, वृथा रूप का मान! प्रेम की बंसी लगी न प्राण! आए नव घन विविध वेश धर, सुन री बहुमुख पावस के स्वर, रूप वारी में लीन निरन्तर, रह न सकेगी, मान! प्रेम की बंसी लगी न प्राण! नाँव द्वार आवेगी बाहर, स्वर्ण जाल में उलझ मनोहर, बचा कौन जग में लुक छिप कर बिंधते सब अनजान! प्रेम की बंसी लगी न प्राण! घिर घिर होते मेघ निछावर, झर झर सर में मिलते निर्झर, लिए डोर वह अग जग की कर, हरता तन मन प्राण! प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

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