प्रथम रश्मि
प्रथम रश्मि का आना रंगिणि! तूने कैसे पहचाना? कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि! पाया तूने वह गाना? सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में, पंखों के सुख में छिपकर, ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर, प्रहरी-से जुगनू नाना। शशि-किरणों से उतर-उतरकर, भू पर कामरूप नभ-चर, चूम नवल कलियों का मृदु-मुख, सिखा रहे थे मुसकाना। स्नेह-हीन तारों के दीपक, श्वास-शून्य थे तरु के पात, विचर रहे थे स्वप्न अवनि में तम ने था मंडप ताना। कूक उठी सहसा तरु-वासिनि! गा तू स्वागत का गाना, किसने तुझको अंतर्यामिनि! बतलाया उसका आना!

Read Next