अनुभूति
तुम आती हो, नव अंगों का शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो। बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम, सांसों में थमता स्पंदन-क्रम, तुम आती हो, अंतस्थल में शोभा ज्वाला लिपटाती हो। अपलक रह जाते मनोनयन कह पाते मर्म-कथा न वचन, तुम आती हो, तंद्रिल मन में स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो। अभिमान अश्रु बनता झर-झर, अवसाद मुखर रस का निर्झर, तुम आती हो, आनंद-शिखर प्राणों में ज्वार उठाती हो। स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम, स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम तुम आती हो, जीवन-पथ पर सौंदर्य-रहस बरसाती हो। जगता छाया-वन में मर्मर, कंप उठती रुध्द स्पृहा थर-थर, तुम आती हो, उर तंत्री में स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।

Read Next