समूहगान
क्रान्ति के लिए जली मशाल क्रान्ति के लिए उठे क़दम ! भूख के विरुद्ध भात के लिए रात के विरुद्ध प्रात के लिए मेहनती ग़रीब जाति के लिए हम लड़ेंगे, हमने ली कसम ! छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ लूट का यह राज हो ख़तम ! तय है जय मजूर की, किसान की देश की, जहान की, अवाम की ख़ून से रंगे हुए निशान की लिख रही है मार्क्स की क़लम !

Read Next