कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक
कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक तिरे वादे पे बैठे कर रहे हैं इंतिज़ार अब तक ख़ुदा मालूम क्यूँ लौटी नहीं जा कर बहार अब तक चमन वाले चमन के वास्ते हैं बे-क़रार अब तक बुरा गुलचीं को क्यूँ कहिए बुरे हैं ख़ुद चमन वाले भले होते तो क्या मुँह देखती रहती बहार अब तक चमन की याद आई दिल भर आया आँख भर आई जहाँ बोला कोई गुलशन में बाक़ी है बहार अब तक सबब जो भी हो सूरत कह रही है रात जागे हो गवाही के लिए बाक़ी है आँखों में ख़ुमार अब तक क़यामत आए तो उन को भी आते आते आएगा वो जिन को तेरे वादे पर नहिं है ए'तिबार अब तक सलामत मय-कदा थोड़ी बहुत उन को भी दे साक़ी तकल्लुफ़ में जो बैठे रह गए कुछ बादा-ख़्वार अब तक ख़ुदारा देख ले दुनिया कि फिर ये भी न देखेगी चमन से जाते जाते रह गई है जो बहार अब तक क़फ़स में रहते रहते एक मुद्दत हो गई फिर भी चमन के वास्ते रहती है बुलबुल बे-क़रार अब तक ख़बर भी है तुझे मय-ख़्वार तो बदनाम है साक़ी दबा कर कितनी बोतल ले गए परहेज़-गार अब तक अरे दामन छुड़ा कर जाने वाले कुछ ख़बर भी है तिरे क़दमों से है लिपटी हुई ख़ाक-ए-मज़ार अब तक ये कहने वाले कहते हैं कि तौबा कर चुके 'बिस्मिल' मगर देखे गए हैं मय-कदे में बार बार अब तक

Read Next