ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से
ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से चमन में फूल खिलेंगे किसी बहाने से वो देखता रहे मुड़ मुड़ के सू-ए-दर कब तक जो करवटें भी बदलता नहीं ठिकाने से उगल न संग-ए-मलामत ख़ुदा से डर नासेह मिलेगा क्या तुझे शीशों के टूट जाने से ज़माना आप का है और आप उस के हैं लड़ाई मोल लें हम मुफ़्त क्यूँ ज़माने से ख़ुदा का शुक्र सवेरे ही आ गया क़ासिद मैं बच गया शब-ए-फ़ुर्क़त के नाज़ उठाने से मैं कुछ कहूँ न कहूँ कह रही है ख़ाक-ए-जबीं कि इस जबीं को है निस्बत इक आस्ताने से क़यामत आए क़यामत से मैं नहीं डरता उठा तो दे कोई पर्दा किसी बहाने से ख़बर भी है तुझे आईना देखने वाले कहाँ गया है दुपट्टा सरक के शाने से ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी हुई 'बिस्मिल' न रो सके न कभी हँस सके ठिकाने से

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