जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या, घुँघटा में आग लगा देती मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती इन चूरियों की लाज पिया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई पियू संत उमंग मेरी आस नई अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती घर आए न तोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती मोहे प्रीत की रीत न भाई सखी, मैं तो बन के दुल्हन पछताई सखी होती न अगर दुनिया की शरम मैं तो भेज के पतियाँ बुला लेती उन्हें भेज के सखियाँ बुला लेती जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या

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