सकल बन फूल रही सरसों
सगन बिन फूल रही सरसों। सगन बिन फूल रही सरसों। अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार-डार, और गोरी करत सिंगार, मलनियाँ गेंदवा ले आईं कर सों, सगन बिन फूल रही सरसों। तरह तरह के फूल खिलाए, ले गेंदवा हाथन में आए। निजामुदीन के दरवज़्ज़े पर, आवन कह गए आशिक रंग, और बीत गए बरसों। सगन बिन फूल रही सरसों।

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