हे मन के अंगार, अगर तुम लौ न बनोगे, क्षार बनोगे
हे मन के अंगार, अगर तुम लौ न बनोगे, क्षार बनोगे। जो न करेगा सीना आगे पीठ उसे खींचेगी पीछे, जो ऊपर को उठ न सकेगा उसको जाना होना नीचे; अस्थिर दुनिया में थिर होकर कोई वस्तु नहीं रहती है, हे मन के अंगार, अगर तुम लौ न बनोगे, क्षार बनोगे। जलना अर्थ उन्हीं का रखता जो कि अँधेरे में खोयों को, हाथों के ऊपर अवलंबित आकुल, शंकित दृग कोयों को आशा का आश्वासन देकर जीवन का संदेश सुनाते, जो न किरण की रेख बनोगे, धूलि-धुँए की धार बनोगे। हे मन के अंगार, अगर तुम लौ न बनोगे, क्षार बनोगे।

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