ओ गगन के जगमगाते दीप
ओ गगन के जगमगाते दीप! दीन जीवन के दुलारे खो गये जो स्वप्न सारे, ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप! यदि न मेरे स्वप्न पाते, क्यों नहीं तुम खोज लाते वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप! यदि न वह भी मिल रही है, है कठिन पाना-सही है, नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप!

Read Next