गाता विश्व व्याकुल राग
गाता विश्व व्याकुल राग। है स्वरों का मेल छूटा, नाद उखड़ा, ताल टूटा, लो, रुदन का कंठ फूटा, सुप्त युग-युग वेदना सहसा पड़ी है जाग। गाता विश्व व्याकुल राग। वीण के निज तार कसकर और अपना साधकर स्वर गान के हित आज तत्पर तू हुआ था, किंतु अपना ध्येय गायक त्याग। गाता विश्व व्याकुल राग। उँगलियां तेरी रुकेंगी, बज नहीं वीणा सकेगी, राग निकलेगा न मुख से, यत्न कर साँसें थकेंगी; करुण क्रंदन में जगत के आज ले निज भाग। गाता विश्व व्याकुल राग।

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