बजा तू वीणा और प्रकार
बजा तू वीणा और प्रकार। कल तक तेरा स्वर एकाकी, मौन पड़ी थी दुनिया बाकी, तेरे अंतर की प्रतिध्वनि थी तारों की झनकार। बजा तू वीणा और प्रकार। आज दबा जाता स्वर तेरा, आज कँपा जाता कर तेरा, बढ़ता चला आ रहा है उठ जग का हाहाकार। बजा तू वीणा और प्रकार। क्या कर की वीणा धर देगा, या नूतन स्वर से भर देगा, जिसमें होगा एक राग तेरा, जग का चीत्कार? बजा तू वीणा और प्रकार।

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