चुपके से चाँद निकलता है
चुपके से चाँद निकलता है। तरु-माला होती स्वच्छ प्रथम, फिर आभा बढ़ती है थम-थम, फिर सोने का चंदा नीचे से उठ ऊपर को चलता है। चुपके से चाँद निकलता है। सोना चाँदी हो जाता है, जस्ता बनकर खो जाता है, पल-पहले नभ के राजा का अब पता कहाँ पर चलता है। चुपके से चंदा ढ़लता है। अरुणाभा, किरणों की माला, रवि-रथ बारह घोड़ोंवाला, बादल-बिजली औ’ इन्द्रधनुष, तारक-दल, सुन्दर शशिबाला, कुछ काल सभी से मन बहला, आकाश सभी को छलता है। वश नहीं किसी का चलता है।

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