व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा?
व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? प्यासी आँखें, भूखी बाँहें, अंग-अंग की अगणित चाहें; और काल के गाल समाता जाता है प्रति क्षण तन मेरा! व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? आशाओं का बाग लगा है, कलि-कुसुमों का भाग जगा है; पीले पत्तों-सा मुर्झाया जाता है प्रति पल मन मेरा! व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? क्या न किसी के मन को भाया, दिल न किसी का बहला पाया? क्या मेरे उर के अंदर ही गूँज मिटा उर क्रंदन मेरा? व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा?

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