मेरे उर पर पत्थर धर दो
मेरे उर पर पत्थर धर दो! जीवन की नौका का प्रिय धन लुटा हुआ मणि-मुक्ता-कंचन तो न मिलेगा, किसी वस्तु से इन खाली जगहों को भर दो! मेरे उर पर पत्थर धर दो! मंद पवन के मंद झकोरे, लघु-लघु लहरों के हलकोरे आज मुझे विचलित करते हैं, हल्का हूँ, कुछ भारी कर दो! मेरे उर पर पत्थर धर दो! पर क्यों मुझको व्यर्थ चलाओ? पर क्यों मुझको व्यर्थ बहाओ? क्यों मुझसे यह भार ढुलाओ? क्यों न मुझे जल में लय कर दो! मेरे उर पर पत्थर धर दो!

Read Next