आज आहत मान आहत प्राण
आज आहत मान, आहत प्राण! कल जिसे समझा कि मेरा मुकुर-बिंबित रूप, आज वह ऐसा, कभी की हो न ज्यों पहचान। आज आहत मान, आहत प्राण! 'मैं तुझे देता रहा हूँ प्यार का उपहार’, ’मूर्ख मैं तुझको बनाती थी निपट नादान।’ आज आहत मान, आहत प्राण! चोट दुनिया-दैव की सह गर्व था, मैं वीर, हाय, ओड़े थे न मैंने शब्द-भेदी-बाण। आज आहत मान, आहत प्राण!

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