मेरे उर की पीर पुरातन तुम न हरोगे, कौन हरेगा।
किसका भार लिए मन भारी
जगती में यह बात अजानी,
कौन अभाव किए मन सूना
दुनिया की यह मौन कहानी,
किंतु मुखर है जिससे मेरे
गायन-गायन, अक्षर-अक्षर,
मेरे उर की पीर पुरातन तुम न हरोगे, कौन हरेगा।
सच पूछो तो मेरा जग का
कुछ स्वर-शब्दों का नाता है,
किंतु बहुत कुछ मन का केवल
धड़कन बनकर रह जाता है,
जिसमें बंद समय की श्वासें
आश्वासन पाने को आतुर,
मेरी छाती पर अपना कर तुम न धरोगे, कौन धरेगा।
मेरे उर की पीर पुरातन तुम न हरोगे, कौन हरेगा।