कहाँ सबल तुम, कहाँ निबल मैं, प्यारे, मैं दोनों का ज्ञाता
कहाँ सबल तुम, कहाँ निबल मैं, प्यारे, मैं दोनों का ज्ञाता। तप, संयम, साधन करने का मुझको कम अभ्यास नहीं है पर इनकी सर्वत्र सफलता पर मुझको विश्वास नहीं है, धन्य पराजय मेरी जिसने बचा लिया दंभी होने से, कहाँ सबल तुम, कहाँ निबल मैं, प्यारे, मैं दोनों का ज्ञाता। जो न कहीं भी हारा ऐसा लेकर मैं पाषाण करूँ क्या, हो भगवान अगर तो पूजूँ पर लेकर इंसान करूँ क्या, स्वर्ग बड़े जीवट वालों का ऐसों को तो नरक न मिलता, दया-द्रवित हो इनके ऊपर यदि न इन्हें कोई ठुकराता। कहाँ सबल तुम, कहाँ निबल मैं, प्यारे, मैं दोनों का ज्ञाता।

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