धार थी तुममें कि उसको आँकते ही हो गया बलिहार था मैं
धार थी तुममें कि उसको आँकते ही हो गया बलिहार था मैं। शौक़ खतरों-जोखिमों से खेल करने का नहीं मेरा नया था, किंतु चुम्बक से खिंचा जैसा तुम्हारे पास क्यों मैं आ गया था, कुछ समझने, ख्याल करने का कहाँ था तब समय, अब सोचता हूँ, धार थी तुममें कि उसको आँकते ही हो गया बलिहार था मैं। आग उसकी है उसे जो बाँह में ले, दाह झेले, गीत गाए, धार उसकी, जो बुझाए प्यास उसकी रक्त से औ’ मुस्कराए, वक्त बातों में नहीं आता परीक्षा सख़्त लेता हर किसी की, और उसके वास्ते तो जिंदगी में सर्वदा तैयार था मैं। धार थी तुममें कि उसको आँकते ही हो गया बलिहार था मैं।

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