चंचला के बाहु का अभिसार बादल जानते हों
चंचला के बाहु का अभिसार बादल जानते हों, किंतु वज्राघात केवल प्राण मेरे, पंख मेरे। कब किसी से भी कहा मैंने कि उसके रूप-मधु की एक नन्हीं बूँद से भी आँख अपनी सार आया, कब किसीसे भी कहा मैंने कि उसके पंथ रज का एक लघुकण भी उठाकर शीश पर मैंने चढ़ाया, कम नहीं जाना अगर जाना कि इसका देखने को स्वप्न भी क्य मूल्य पड़ता है चुकाना जिंदगी को, चंचला के बाहु का अभिसार बादल जानते हों, किंतु वज्राघात केवल प्राण मेरे, पंख मेरे।

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