आ गई बरसात, मुझको आज फिर घेरे हुए बादल
आ गई बरसात, मुझको आज फिर घेरे हुए बादल। वायु के ये नभ झकोरे छू मुझे फिर भाग जाते हैं, क्या पता इनको कि दिल के दर्द कितने जाग जाते हैं, नभ उधर भरता कि मेरा कंठ भर आता अचानक ही, आ गई बरसात, मुझको आज फिर घेरे हुए बादल। था गगन कड़का कि छाती में तुम्हें मैंने छिपाया था, थीं गिरीं बूँदें कि तुमने और मैंने सँग नहाया था, याद सतरंगी लिए हम इंद्रधनु की साथ लौटे थे, सुधि-बसे कितने क्षणों को आज फिर छेड़े हुए बादल। आ गई बरसात, मुझको आज फिर घेरे हुए बादल।

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