ओ मेरे यौवन के साथी
मेरे यौवन के साथी, तुम एक बार जो फिर मिल पाते, वन-मरु-पर्वत कठिन काल के कितने ही क्षण में कह जाते। ओ मेरे यौवन के साथी! तुरत पहुंच जाते हम उड़कर, फिर उस जादू के मधुवन में, जहां स्वप्न के बीज बिखेरे थे हमने मिट्टी में, मन में। ओ मेरे यौवन के साथी! सहते जीवन और समय का पीठ-शीश पर बोझा भारी, अब न रहा वह रंग हमारा, अब न रही वह शक्ल हमारी। ओ मेरे यौवन के साथी! चुप्पी मार किसी ने झेला और किसी ने रोकर, गाकर, हम पहचान परस्पर लेंगे कभी मिलें हम, किसी जगह पर। ओ मेरे यौवन के साथी! हम संघर्ष काल में जन्मे ऐसा ही था भाग्य हमारा, संघर्षों में पले, बढ़े भी, अब तक मिल न सका छुटकारा। ओ मेरे यौवन के साथी! औ’ करते आगाह सितारे और बुरा दिन आने वाला, हमको-तुमको अभी पड़ेगा और कड़ी घड़ियों से पाला। ओ मेरे यौवन के साथी! क्या कम था संघर्ष कि जिसको बाप और दादों ने ओड़ा, जिसमें टूटे और बने हम वह भी था संघर्ष न थोड़ा। ओ मेरे यौवन के साथी! और हमारी संतानों के आगे भी संघर्ष खड़ा है, नहीं भागता संघर्षों से इसीलिए इंसान बड़ा है। ओ मेरे यौवन के साथी! लेकिन, आओ, बैठ कभी तो साथ पुरानी याद जगाएं, सुनें कहानी कुछ औरों की कुछ अपनी बीती बतलाएं। ओ मेरे यौवन के साथी! ललित राग-रागिनियों पर है अब कितना अधिकार तुम्हारा? दीप जला पाए तुम उनसे? बरसा सके सलिल की धारा? ओ मेरे यौवन के साथी! मोहन, मूर्ति गढ़ा करते हो अब भी दुपहर, सांझ सकारे? कोई मूर्ति सजीव हुई भी? कहा किसी ने तुमको ’प्यारे’? ओ मेरे यौवन के साथी! बतलाओ, अनुकूल कि अपनी तूली से तुम चित्र-पटल पर ला पाए वह ज्योति कि जिससे वंचित सागर, अवनी, अंबर? ओ मेरे यौवन के साथी! मदन, सिद्ध हो सकी साधना जो तुमने जीवन में साधी? किसी समय तुमने चाहा था बनना एक दूसरा गांधी! ओ मेरे यौवन के साथी! और कहाँ, महबूब, तुम्हारी नीली, आंखों वाली ज़ोहरा, तुम जिससे मिल ही आते थे, दिया करे सब दुनिया पहरा। ओ मेरे यौवन के साथी! क्या अब भी हैं याद तुम्हें चुटकुले, कहानी किस्से, प्यारे, जिनपर फूल उठा करते थे हँसते-हँसते पेट हमारे। ओ मेरे यौवन के साथी! हमें समय ने तौला, परखा, रौंदा, कुचला या ठुकराया, किंतु नहीं वह मीठी प्यारी यादों का दामन छू पाया। ओ मेरे यौवन के साथी! अक्सर मन बहलाया करता मैं यों करके याद तुम्हारी, तुमको भी क्या आती होगी इसी तरह से याद हमारी? ओ मेरे यौवन के साथी! मैं वह, जिसने होना चाहा था रवि ठाकुर का प्रतिद्वन्दी, और कहां मैं पहुंच सका हूँ बतलाएगी यह तुकबंदी। ओ मेरे यौवन के साथी!

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