देश के कवियों से
सुवर्ण मृत्तिका हुई कलम छुई, अमृत हर एक बिंदु लेखनी चुई, कलम जहाँ गई वहाँ विजय हुई, विफल रही नहीं कभी न भारती। कलम लिए चले कि तुम कला चली, कि कल्पना रहस्य-अंचला चली, कि व्योम-स्वर्ग-स्वप्न-श्रृंखला चली, तुम्हें स्वदेश-पुतलियां निहारतीं। करो विचित्र इंद्रधनु-विभा परे, तजो सुरम्य हस्ति-दंत-घरहरे, न अब नखत निहारकर निहाल हो, न आसमान देखते रहो खड़े, तुम्हें ज़मीन देश की पुकारती।

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