नव विहान
नयन बनें नवीन ज्योति के निलय, नवल प्रकाश पुंज से जगे हृदय, नवीन तेज बुद्धि को करे अभय, सुदीर्घ देश की निशा समाप्त हो। जगह-जगह उड़े निशान देश का, फ़रक ज़बान और वेश का, बसेक धर्म हो प्रजा अशेष का, स्वराष्ट्र-भक्ति व्यक्ति-व्यक्ति व्याप्त हो। कि जो स्वदेश के चतुर सुजान हैं, कि जो स्वदेश के पुरुष प्रधान हैं, कि जो स्वदेश के निगाहबान हैं, उन्हें अचूक दिव्य दृष्टि प्राप्त हो।

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