देश के सैनिकों से
कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला, स्वतंत्र हो कदम न चार था चला, कि एक आ खड़ी हुई नई बला, परंतु वीर हार मानते कभी? निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े, कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े, फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े, जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी। जवान हिंद के अडिग रहो डटे, न जब तलक निशान शत्रु का हटे, हज़ार शीश एक ठौर पर कटे, ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे, तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।

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