आज़ादी के बाद
अगर विभेद ऊँच-नीच का रहा, अछूत-छूत भेद जाति ने सहा, किया मनुष्य औ’ मनुष्य में फ़रक़, स्वदेश की कटी नहीं कुहेलिका। अगर चला फ़साद शंख-गाय का, फ़साद संप्रदाय-संप्रदाय का, उलट न हम सके अभी नया वरक़, चढ़ी अभी स्वदेश पर पिशाचिका। अगर अमीर वित्त में गड़े रहे, अगर गरीब कीच में पड़े रहे, हटा न दूर हम सके अभी नरक, स्वदेश की स्वतंत्रता मरीचिका।

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