अग्नि परीक्षा
यह मानव की अग्नि-परीक्षा। बढ़ती हैं लपटें भयकारी अगणित अग्नि-सर्प-सी बन-बन, गरुड़ व्यूह से धँसकर इनमें इनका कर स्वीकार निमंत्रण; देख व्यर्थ मत जाने पाये विगत युगों की शीक्षा-दीक्षा। यह मानव की अग्नि-परीक्षा। सच है, राख बहुत कुछ होगा जिस पर मोहित है तेरा मन, किंतु बचेगा जो कुछ, होगा सत्य और शिव, सुंदर कंचन; किंतु अभी तो लड़ ज्वाला से, व्यर्थ अभी अज्ञात-समीक्षा। यह मानव की अग्नि-परीक्षा। खड़े स्वर्ग में बुद्ध, मुहम्मद राम, कृष्ण, औ’ ईशा नरवर, मानवता को उच्च उठाने- वाले अनगिन संत-पयंबर साँस रोक अपलक नयनों से करते हैं परिणाम-प्रतीक्षा। यह मानव की अग्नि-परीक्षा।

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