जय हो, हे संसार तुम्हारी
जय हो, हे संसार, तम्हारी! जहाँ झुके हम वहाँ तनो तुम, जहाँ मिटे हम वहाँ बनो तुम, तुम जीतो उस ठौर जहाँ पर हमने बाज़ी हारी! जय हो, हे संसार, तुम्हारी! मानव का सच हो सपना सब, हमें चाहिए और न कुछ अब, याद रहे हमको बस इतना- मानव जाति हमारी! जय हो, हे संसार, तुम्हारी! अनायास निकली यह वाणी, यह निश्चय होगी कल्याणी, जग को शुभाशीष देने के हम दुखिया अधिकारी! जय हो, हे संसार, तुम्हारी!

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