आओ, बैठे तरु के नीचे
आओ, बैठें तरु के नीचे! कहने को गाथा जीवन की, जीवन के उत्थान पतन की अपना मुँह खोलें, जब सारा जग है अपनी आँखें मींचे! आओ, बैठें तरु के नीचे! अर्ध्य बने थे ये देवल के अंक चढ़े थे ये अंचल के आओ, भूल इसे, आँसू से अब निर्जीव जड़ों को सींचे! आओ, बैठें तरु के नीचे! भाव भरा उर शब्द न आते, पहुँच न इन तक आँसू पाते, आओ, तृण से शुष्क धरा पर अर्थ रहित रेखाएँ खींचे! आओ, बैठें तरु के नीचे!

Read Next