भीगी रात विदा अब होती
भीगी रात विदा अब होती। रोते-रोते रक्त नयन हो, पीत बदन हो, छाया तन हो, पार क्षितिज के रजनी जाती, अपना अंचल छोर निचोती। भीगी रात विदा अब होती। प्राची से ऊषा हँस पड़ती, विहगावलियाँ नौबत झड़ती, पल में निर्मम प्रकृति निशा के रोदन की सब चिंता खोती। भीगी रात विदा अब होती। हाथ बढ़ा सूरज किरणों के पोंछ रहा आँसू सुमनों के, अपने गीले पंख सुखाते तरु पर बैठ कपोत-कपोती। भीगी रात विदा अब होती।

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