यह पपीहे की रटन है
यह पपीहे की रटन है! बादलों की घिर घटाएँ, भूमि की लेतीं बलाएँ, खोल दिल देतीं दुआएँ- देख किस उर में जलन है! यह पपीहे की रटन है! जो बहा दे, नीर आया, आग का फिर तीर आया, वज्र भी बेपीर आया- कब रुका इसका वचन है! यह पपीहे की रटन है! यह न पानी से बुझेगी, यह न पत्थर से दबेगी, यह न शोलों से डरेगी, यह वियोगी की लगन है! यह पपीहे की रटन है!

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