जग का-मेरा प्यार नहीं था
जग-का मेरा प्यार नहीं था! तूने था जिसको लौटाया, क्या उसको मैंने फिर पाया? हृदय गया था अर्पित होने, साधारण उपहार नहीं था! जग-का मेरा प्यार नहीं था! सीमित जग से सीमित क्षण में सीमाहीन तृषा थी मन में, तुझमें अपना लय चाहा था, हेय प्रणय अभिसार नहीं था! जग-का मेरा प्यार नहीं था! स्वर्ग न जिसको छू पाया था, तेरे चरणों में आया था, तूने इसका मूल्य न समझा, जीवन था, खिलवार नहीं था! जग-का मेरा प्यार नहीं था!

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